जीवन निर्बाध गति से चल रहा है ...
मानस में एक चिंतन पल रहा है ...
जिंदगी जीने का एक उद्देश्य है ...
करने को कार्य बहुत अभी शेष है ...
बंद आखो से जो देखे है स्वप्न मैंने ...
खुली आखो से किये है उनको पूरा करने के प्रयत्न मैंने...
ये स्वप्न जारी रहेंगे ,ये प्रयत्न जारी रहेंगे ...
मंजिल की तरफ बरने के ये यत्न जारी रहेंगे ...
मानस में एक चिंतन है ...
सोच की परिभाषा है ...
सुधा कलश की तलाश में ...
यह मन अभी तक प्यासा है ...
मन का मानक है मनन ...
कब तक छुपेगी सप्तरंगी किरण ...
दीप झिलमिलाहट में ...
खुशी के आने की आहट में ...
थकान की वेदना से बेहाल मन ...
जब चल पड़े है सभी के चरण ...
मेरी दूसरी कविता पढने के लिए कृपया यहाँ देखे ..
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Thursday, September 16, 2010
स्वप्न .........
Posted by Jayant at 3:13 AM 0 comments
Thursday, August 12, 2010
जज़्बात
ट्विट्टर से उठाये गए कुछ नायब मोती ..........
जब कभी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है............
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है................
यही हालत इब्तिदा से रहे ................
लोग हम से खफा खफा से रहे ................
उन चिरागों में तेल ही कम था ............
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे ............
तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ .......
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ ........
उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है ..
में भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ ........
खुशशकल भी है वो , ये बात और है मगर ............
हमें तो जहीन लोग पहले भी अज़ीज़ थे ..............................
कुछ बातों के मुतलब हैं और कुछ मुतलब की बातें ,जो यह फर्क सुमझ लेगा वो दीवाना तो होगा .............
रात सर पर है और सफ़र बाकी .....
हम को चलना ज़रा सवेरे था ...
हर सुबह की शाम होती है , हर शाम की सुबह . कोई तो बताए ज़िन्दगी आराम कब करती है !
जब कभी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है............
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है................
यही हालत इब्तिदा से रहे ................
लोग हम से खफा खफा से रहे ................
उन चिरागों में तेल ही कम था ............
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे ............
तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ .......
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ ........
उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है ..
में भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ ........
खुशशकल भी है वो , ये बात और है मगर ............
हमें तो जहीन लोग पहले भी अज़ीज़ थे ..............................
कुछ बातों के मुतलब हैं और कुछ मुतलब की बातें ,जो यह फर्क सुमझ लेगा वो दीवाना तो होगा .............
रात सर पर है और सफ़र बाकी .....
हम को चलना ज़रा सवेरे था ...
हर सुबह की शाम होती है , हर शाम की सुबह . कोई तो बताए ज़िन्दगी आराम कब करती है !
Posted by Jayant at 8:46 AM 0 comments
Thursday, April 1, 2010
मेरी मधुशाला !!!!!!!!
कभी लक्ष्य को प्रेरित करती,
राह दिखलाती है हाला ...
कभी प्रेम से पास बुलाती,
मन बहलाती साकीबाला ...
हूँ इस असमंजस में ,
किस रूप को मै स्वीकार करू ...
कभी प्रेरक , कभी विदूषक
लगती मुझको मधुशाला .......
लाख भुलाना चाहू
पर मै भूल नहीं पाता हाला..........
लाख भुलाना चाहू
पर मै भूल नहीं पाता प्याला...........
भूतकाल की निष्टुर यादे,
कब पीछा मेरा छोड़ेगी ...........
एक पग बढने पर
दो पग पीछे लाती मधुशाला .........
बहुतेरे प्रयत्न किये पर
पा न सका साकीबाला...........
बहुतेरे संघर्ष किये पर
पा न सका मधु का प्याला.........
मदिरा से मोह भंग हुआ
तो कर्तव्यों का भान हुआ........
"कर्त्तव्य परक मानव जीवन "
का पाठ पढाती मधुशाला ........
फूट फूट के रोया था
जब टूटा था मधू का प्याला .........
बाकी प्यालो की मस्ती से
था अनजाना मतवाला ............
टूटे प्यालो के पीछे छिपी
मस्ती का आभास किसे.........
हर हार के पीछे लिए खड़ी है
चार सफलता मधुशाला ..........
प्रथम बार जब पीना चाहा,
पी न सका तब मै हाला ...
प्रथम दिवस जब छूना चाहा ,
छू न सका मधु का प्याला ....
प्रथम प्रेम प्रस्ताव मेरा ,
साकी ने अस्वीकार किया ...........
पूछ परख कर ही अपना
जीवन साथी चुनती मधुशाला ................
राह दिखलाती है हाला ...
कभी प्रेम से पास बुलाती,
मन बहलाती साकीबाला ...
हूँ इस असमंजस में ,
किस रूप को मै स्वीकार करू ...
कभी प्रेरक , कभी विदूषक
लगती मुझको मधुशाला .......
लाख भुलाना चाहू
पर मै भूल नहीं पाता हाला..........
लाख भुलाना चाहू
पर मै भूल नहीं पाता प्याला...........
भूतकाल की निष्टुर यादे,
कब पीछा मेरा छोड़ेगी ...........
एक पग बढने पर
दो पग पीछे लाती मधुशाला .........
बहुतेरे प्रयत्न किये पर
पा न सका साकीबाला...........
बहुतेरे संघर्ष किये पर
पा न सका मधु का प्याला.........
मदिरा से मोह भंग हुआ
तो कर्तव्यों का भान हुआ........
"कर्त्तव्य परक मानव जीवन "
का पाठ पढाती मधुशाला ........
फूट फूट के रोया था
जब टूटा था मधू का प्याला .........
बाकी प्यालो की मस्ती से
था अनजाना मतवाला ............
टूटे प्यालो के पीछे छिपी
मस्ती का आभास किसे.........
हर हार के पीछे लिए खड़ी है
चार सफलता मधुशाला ..........
प्रथम बार जब पीना चाहा,
पी न सका तब मै हाला ...
प्रथम दिवस जब छूना चाहा ,
छू न सका मधु का प्याला ....
प्रथम प्रेम प्रस्ताव मेरा ,
साकी ने अस्वीकार किया ...........
पूछ परख कर ही अपना
जीवन साथी चुनती मधुशाला ................
Posted by Jayant at 7:11 PM 2 comments
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