जीवन निर्बाध गति से चल रहा है ...
मानस में एक चिंतन पल रहा है ...
जिंदगी जीने का एक उद्देश्य है ...
करने को कार्य बहुत अभी शेष है ...
बंद आखो से जो देखे है स्वप्न मैंने ...
खुली आखो से किये है उनको पूरा करने के प्रयत्न मैंने...
ये स्वप्न जारी रहेंगे ,ये प्रयत्न जारी रहेंगे ...
मंजिल की तरफ बरने के ये यत्न जारी रहेंगे ...
मानस में एक चिंतन है ...
सोच की परिभाषा है ...
सुधा कलश की तलाश में ...
यह मन अभी तक प्यासा है ...
मन का मानक है मनन ...
कब तक छुपेगी सप्तरंगी किरण ...
दीप झिलमिलाहट में ...
खुशी के आने की आहट में ...
थकान की वेदना से बेहाल मन ...
जब चल पड़े है सभी के चरण ...
मेरी दूसरी कविता पढने के लिए कृपया यहाँ देखे ..
Thursday, September 16, 2010
स्वप्न .........
Posted by Jayant at 3:13 AM 0 comments
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