Thursday, August 12, 2010

जज़्बात

ट्विट्टर से उठाये गए कुछ नायब मोती ..........

जब कभी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है............
माँ दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है................

यही हालत इब्तिदा से रहे ................
लोग हम से खफा खफा से रहे ................
उन चिरागों में तेल ही कम था ............
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे ............


तुम बैठे हो लेकिन जाते देख रहा हूँ .......
मैं तन्हाई के दिन आते देख रहा हूँ ........
उस की आँखों में भी काजल फैल रहा है ..
में भी मुड़ के जाते जाते देख रहा हूँ ........


खुशशकल भी है वो , ये बात और है मगर ............
हमें तो जहीन लोग पहले भी अज़ीज़ थे ..............................


कुछ बातों के मुतलब हैं और कुछ मुतलब की बातें ,जो यह फर्क सुमझ लेगा वो दीवाना तो होगा .............


रात सर पर है और सफ़र बाकी .....
हम को चलना ज़रा सवेरे था ...


हर सुबह की शाम होती है , हर शाम की सुबह . कोई तो बताए ज़िन्दगी आराम कब करती है !